चार पैसे की सीख: एक संतोषी किसान की कहानी

चार पैसे की सीख: एक संतोषी किसान की कहानी- एक बार की बात है, एक राजा भेष बदलकर अपने राज्य में घूमने निकले। वे यह देखना चाहते थे कि उनके राज्य के लोग कैसे रहते हैं। घूमते-घूमते उनकी नज़र एक किसान पर पड़ी।

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Four paisa learning Story of a Santoshi farmer

Story of a Santoshi farmer

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चार पैसे की सीख: एक संतोषी किसान की कहानी- एक बार की बात है, एक राजा भेष बदलकर अपने राज्य में घूमने निकले। वे यह देखना चाहते थे कि उनके राज्य के लोग कैसे रहते हैं। घूमते-घूमते उनकी नज़र एक किसान पर पड़ी। वह किसान एक पेड़ की छाँव में बैठकर बड़े चाव से अपना खाना खा रहा था। उसने साधारण कपड़े पहने थे, लेकिन उसके चेहरे पर खुशी की चमक थी।

राजा को उस किसान पर दया आ गई। उन्होंने सोचा, "यह किसान कितना गरीब है! मैं इसे कुछ सोने की मुद्राएँ दे देता हूँ, ताकि इसके जीवन में थोड़ी खुशियाँ आ सकें।" राजा किसान के पास गए और बोले, "अरे भाई! मुझे तुम्हारे खेत के पास ये चार सोने की मुद्राएँ गिरी हुई मिली हैं। यह खेत तुम्हारा है, तो ये मुद्राएँ तुम्हारी हुईं। इन्हें रख लो।"

किसान ने मुस्कुराकर कहा, "धन्यवाद, सेठ जी! लेकिन ये मुद्राएँ मेरी नहीं हैं। आप इन्हें रख लें या किसी ज़रूरतमंद को दे दें। मुझे इनकी ज़रूरत नहीं है।"

राजा को लगा आश्चर्य (The King’s Surprise)

राजा को बहुत हैरानी हुई। उन्होंने सोचा, "धन की ज़रूरत तो हर किसी को होती है! यह किसान ऐसा क्यों कह रहा है?" उन्होंने फिर से पूछा, "भाई, भला धन की ज़रूरत किसे नहीं होती? तुम इसे क्यों नहीं ले रहे?"

किसान ने बड़े प्यार से जवाब दिया, "सेठ जी, मैं रोज़ चार पैसे कमा लेता हूँ और उतने में ही बहुत खुश हूँ। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"

राजा को यह बात समझ नहीं आई। उन्होंने पूछा, "चार पैसे में तुम इतने खुश कैसे रहते हो? यह कैसे संभव है?"

किसान ने हँसते हुए कहा, "हुजूर, खुशी इस बात पर नहीं निर्भर करती कि हम कितना कमाते हैं। खुशी तो इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने पैसे का इस्तेमाल कैसे करते हैं। मैं अपने चार पैसों का ऐसा इस्तेमाल करता हूँ कि मुझे कभी दुख नहीं होता। मैं एक पैसा कुएँ में डाल देता हूँ, दूसरा पैसा कर्ज चुकाने में लगाता हूँ, तीसरा उधार दे देता हूँ और चौथा मिट्टी में गाड़ देता हूँ।"

राजा की जिज्ञासा (The King’s Curiosity)

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राजा को किसान की बात समझ नहीं आई। उन्होंने बहुत सोचा, अपने मंत्रियों से सलाह ली, लेकिन कोई भी इसका मतलब नहीं समझ पाया। आखिरकार, राजा ने अगले दिन किसान को अपने दरबार में बुलाया। राजा ने कहा, "किसान भाई, मैं तुम्हारी संतुष्टि और खुशी देखकर बहुत खुश हुआ हूँ। लेकिन तुमने जो चार पैसों की बात कही, वह मुझे समझ नहीं आई। कृपया अपनी बात विस्तार से बताओ।"

किसान की समझदारी (The Farmer’s Wisdom)

किसान ने हाथ जोड़कर कहा, "महाराज, मैंने जो कहा, उसका मतलब यह है—पहला पैसा जो मैं कुएँ में डालता हूँ, वह मैं अपने परिवार के खाने-पीने और देखभाल में खर्च करता हूँ। दूसरा पैसा मैं कर्ज चुकाने में लगाता हूँ, यानी अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा करता हूँ, क्योंकि उन्होंने मुझे बड़ा किया, तो उनकी सेवा मेरा कर्ज है। तीसरा पैसा मैं उधार देता हूँ, यानी अपने बच्चों की पढ़ाई और उनकी ज़रूरतों में लगाता हूँ, ताकि उनका भविष्य अच्छा हो। और चौथा पैसा मैं मिट्टी में गाड़ देता हूँ, यानी थोड़ी-सी बचत करता हूँ, जिससे मैं किसी से माँगने की नौबत न आए। उस बचत से मैं धार्मिक और सामाजिक काम करता हूँ, जैसे ग़रीबों की मदद करना।"

राजा की प्रसन्नता (The King’s Happiness)

राजा किसान की बात सुनकर बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा, "किसान भाई, तुमने मुझे बहुत बड़ी सीख दी है। तुमने सिखाया कि असली खुशी पैसे की मात्रा में नहीं, बल्कि उसे सही जगह इस्तेमाल करने में है।" राजा ने किसान को ढेर सारा इनाम दिया, लेकिन किसान ने वही बात दोहराई, "महाराज, मुझे इनकी ज़रूरत नहीं। मैं अपने चार पैसों में ही खुश हूँ।"

बच्चों के लिए सीख (Moral for Kids)

बच्चों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जो कुछ मिला है, उसमें खुश रहना चाहिए। लालच करने से खुशी नहीं मिलती। हमें अपने पैसे और चीज़ों का सही इस्तेमाल करना चाहिए—अपने परिवार की देखभाल करनी चाहिए, माँ-बाप का सम्मान करना चाहिए, और दूसरों की मदद करनी चाहिए। जैसे किसान अपने चार पैसों में खुश था, वैसे ही हमें भी अपनी चीज़ों की कद्र करनी चाहिए। (Moral Story for Kids, Importance of Contentment, Hindi Story)

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